Sunday, February 26, 2012

एक कहानी

एक कहानी शायद जानी पहचानी,
मेरी है ये ,  या है शायद तुम्हारी ,

सुकून भरी जींदगी प्यार की आहट से अंजानी,
हंसती खेलती गुनगुनाती हुई एक जिंदगानी ,
मेरी है ये ,  या है शायद तुम्हारी ,

कोई भी फूल खिल्ला बाग़ में सब थे उसके लिए एक से,
नादान भोली थोड़ी चुलबुली वो थी ,
फिर फर्क करती उन फूलों में कैसे ।।

गुलाब खिले या फिर कोई कँवल मिले,
सबको वैसे ही थी अपनाती,
"सूरज" की तपिश हो या चांदनी की ठंडक,
दोनों को हंस कर थी गले लगाती ।।

मिलती हवा से उड़ती आसमान में,
सोचा न कभी उसने बुरे वक़्त के बारे में,
जीना चाहती थी हर पल हर घडी में,
बिना सोचे कुछ आगे के बारे में ।।

वक़्त आया फिर जब मिली वो उस से,
प्यार था वो या था किस्मत का किस्सा,
चलती रही बिन सोचे उसके साथ में,
एक कशिश सी ले कर अपने दिल में ।।


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